. #शुभ_रात्रि
जिस विषय में ध्यान दीजिये उनके अच्छे बुरे पहलुओं का एक सर्वांगपूर्ण रेखा चित्र अपने मस्तिष्क में बनाते रहिए जिधर कभी या अनुपयुक्तता दिखाई दे उधर ही मन की दीवार खड़ी कर दीजिए और अपनी रुचि की दिशा को सन्मार्ग की ओर मोड़े रहिए । निरन्तर अभ्यास से वह स्थिति बन जाती है जब मन स्वयं कोई विकल्प उत्पन्न नहीं करता। सत्संकल्पों में ही - अवस्थित बनने के लिए गीताकार ने भी यही प्रयोग बताया है। लिखा है-
अशंसय महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् ।
अभ्यासेन कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ।।
हे अर्जुन! निश्चय ही यह मन चंचल और अस्थिर है। इसको वश में करना निश्चय ही कठिन है, किन्तु अभ्यास और वैराग्य भावना से वह भी वशवर्ती हो जाता है।
अभ्यास का अर्थ है आप जिस विषय में रुचि रखते हैं बार-बार अपने मन को उसी में लगाइये। मान लीजिये आपको विद्याध्ययन करना है तो आपका ध्यान इस प्रकार रहे कि कहां से पुस्तकें प्राप्त करें? कौन सी पुस्तक अधिक उपयुक्त है ? किसी से सहायता भी लेनी पड़ेगी। अच्छे नम्बर प्राप्त करने के लिये परिश्रम भी वैसा ही करना है। इससे आपके विचारों की आत्मनिर्भरता, सूझ और अनुभव बढ़ेंगे और उसी विषय में लगे रहने से आपको सफलता भी मिलेगी।
अपनी इस हीन प्रवृत्ति के कारण ही मनुष्य प्रायः अशुभ विचारों और अप्रिय अवस्थाओं का चिन्तन करते रहते हैं। इसी कारण उनके मस्तिष्क में निरन्तर द्वन्द्व छिड़ा रहता है। कामुकता पूर्ण विचारों वाला व्यक्ति सदैव वैसे ही विचारों से घिरा रहता है थोड़े से विचार आत्म-कल्याण के बनाता भी है तो अनिश्चयात्मक बुद्धि के कारण तरह-तरह के संशय उठते रहते हैं। जब तक एक तरह के विचार परिपक्व नहीं होते तब तक उस दिशा में अपेक्षित प्रयास भी नहीं बन पाते। यही कारण है मनुष्य किसी क्षेत्र में प्रगति नहीं कर पाता।
सद्विचार जब जागृत होते हैं तो मनुष्य का जीवन स्वस्थ, सुन्दर और सन्तोषयुक्त बनता है। अपना संकल्प जितना बलवान बनेगा उतना ही मन की चंचलता दूर रहेगी और संयम बना रहेगा। इससे शक्ति जो मनुष्य को उत्कृष्ट बनाती है विश्रृंखलित न होगी और मनुष्य दृढ़तापूर्वक अपने निश्चय पथ पर बढ़ता चला चलेगा।
. 🚩ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🚩