बहुत ही विचारणीय प्रश्न 😳🤔
बात कड़वी है पर सच है…
- हिन्दू आस्था में नहीं,
- मनोरंजन में जी रहा है।
▪️क्या आप ने कभी ईद में मु&लमानों को मस्जिद के सामने नशा करके अश्लील गानों पर नाचते हुए देखा है…?
▪️क्या आप ने कभी ईशु मसीह के सामने क्रिस्चियन लोगों को शांताबाई गाने पर नाचते हुए देखा है…?
▪️क्या आप ने कभी सिक्ख लोगों को अपने भगवान के सामने, 'आला बाबुराव गाना लगाकर' नाचते हुए देखा है ?
ये सभी समाज अपने-अपने इष्ट का मान सम्मान बड़ी ईमानदारी से करते हैं। क्योंकि उनको उनका धर्म उनकी संस्कृति को टिकाना है।
फिर हमारे सनातन धर्म के भगवान, देवी-देवता के सामने नशा करके और डीजे लगाकर अश्लील गाने लगाकर ये भद्दा नाच करने की बीमारी क्यों हो गयी है।
घर में लाडली बेटी का विवाह है, दूल्हे राजा अपनी होने वाली गृहलक्ष्मी को लेने द्वार पर पहुँचा है और डीजे वाले बजाते हैं - ("तू चीज बड़ी है मस्त-मस्त!" "अपनी तो जैसे तैसे, आपका क्या होगा जनाबे-आली!")
ये कलंक हमारे सनातन समाज पर ही क्यों लग गया है या हमने ही लगा लिया है। अन्य धर्म के लोग अपने धार्मिक, पारिवारिक, सामाजिक कार्यक्रम में ऐसी फालतूगीरी नहीं करते।
डीजे पर अश्लील गाने लगाकर, बारात में नाचकर, रिसेप्शन के नाम पर लाखों रुपया खर्च कर, अन्न देवता का अपमान कर क्या हम अपने ही इष्ट का अपनी ही सनातन संस्कृति पारिवारिक परम्परा का अपमान नहीं कर रहे है।
हमें अपने त्यौहार बड़े उत्साह और बड़े पैमाने पर मनाने चाहिए। साथ ही पारम्परिक वाद्य, ढोल मजीरों, पारम्परिक पोशाक में बड़े ही शान से प्रत्येक हिन्दू त्यौहारों में दिखनी ही चाहिए।
तभी हमारी सनातन संस्कृति टिकेगी। अब आप स्वयं ही विचार करें, और दूसरों को भी इस मुख्य विषय पर विचार करने को कहें।
वर्तमान समय में नवरात्रि, गणेशोत्सव, दशहरा आदि त्योहारों में ध्यान रखें और कोई आपके गावों-शहरों में ऐसा करता दिखे तो कृपया उन्हें विनम्रतापूर्वक समझाए। समाज के जो कर्ता-धर्ता बनकर बैठे हैं उनको भी अपने-अपने सामाजिक संगठनों के प्रभाव व दबाव पूर्वक ऐसे करने वालो को बलपूर्वक रोकने का प्रयास करना चाहिये।
फूहड़ गानों की जगह हिन्दू भक्ति गीत व संगीत पर आधारित श्लोक व हरि धुन लगाएं।
आधे-अधूरे, कटे-फटे, भड़काऊ वस्त्र पहनना, अंतर्जातीय प्यार और विवाह करना, माता-पिता को रूढ़ीवादी बताना, लिव-रिलेशनशिप में बिंदास जीवन बिताना, बिना शादी किए अपने होने वाली जीवनसंगिनी के साथ अमर्यादित, अभद्र फोटो विडियो शूटिंग करा दुनिया को दिखाना आदि अनेक उदाहरण है जो बीमारी केवल और केवल हिन्दू समाज को ही लगी हुई है।
हिंदू संस्कृति का जितना नुकसान स्वयं हमने किया है, उसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। अफसोस, क्या हम अपने घर परिवार के कोई भी आयोजन में जस मंडली, भजन मंडली, फाग मंडली, महिला मंडली, संस्कृत स्तोत्र उच्चारण करने वाले विद्वानों तथा लोकल व पारंपरिक वाद्य यंत्रों वाले कलाकारों को नहीं बुला सकते। अतः आज समस्त हिन्दू समाज एवं भारत के सभी संगठनों को इस पर आत्मचिंतन करना चाहिए।
कृपया अपने बच्चों को आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ अपने परिवार, समाज, संस्कृति व धर्म से भी जोड़े। 👏