भीष्म जब बाणों से विधकर भूमि पर गिरे तो महाभारत के रचयिता वेदव्यास ने लिखा है।
यह भारत वर्ष जब तक रहेगा। तब तक इस पर गर्व करता रहेगा कि उसके सपूतों में भीष्म जैसे योद्धा, ज्ञानी, राजनितिज्ञ, धर्मात्मा पैदा हुये थे।
उनके गुरुओं में बृहस्पति, भार्गव, परसुराम जैसे नाम है। वह ऐसे योद्धा थे, यदि उनके हाथ मे अस्त्र हो तो इंद्र भी पराजित नही कर सकते थे।
लेकिन गंगापुत्र भीष्म का जीवन कितनी विवशताओं , संशयों, अनिर्णयो से भरा हुआ है। प्रतिज्ञाओं कि जंजीर में ऐसे बंध गये कि सत्य असत्य के लिये तर्क का सहारा लेना पड़ा।
भीष्म के व्यक्तित्व पर विद्वानों में मतैक्य है। उनकी आलोचना करने वाले कि संख्या कम नही है।
लेकिन मेरा मत है। जो लोग जीवन को किसी मर्यादा, प्रतिज्ञा, वचन में बांधकर जीते हैं। उनका जीवन ऐसा ही होता है।
फिर भी भीष्म ऐसे महापुरुष, योद्धा है। जो अपनी मृत्यु का उपाय स्वयं बताते हैं। यह थकान है! उन विवशताओं कि, संशयों कि, अनिर्णयो कि जो प्रतिज्ञा के कर्तव्य से उपजी थी। जिसका अंत मृत्यु ही है।।